भोपाल । कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत के भाजपा में शामिल होने के साथ ही ग्वालियर-चंबल अंचल का चुनावी समीकरण बदल गया है। वहीं प्रदेश की कई सीटों पर जातीय समीकरण भी गड़बड़ा गए हैं। जानकारों का कहना है कि रावत के भाजपा में जाने से सबसे अधिक नुकसान राजगढ़ से कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को होगा। यानी अभी तक मजबूत स्थिति में दिख रहे दिग्गी राजा का खेल रावत बिगाड़ सकते हैं।
गौरतलब है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं विधायक रामनिवास रावत भाजपा में शामिल होते ही कांग्रेस और दिग्विजय सिंह पर हमला बोल दिया है। वहीं रामनिवास के पार्टी बदलने से ग्वालियर चंबल की सीटों पर जातीय समीकरण बदल गए हैं। रामनिवास का पार्टी छोडऩा कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। गौरतलब है कि रामनिवास रावत के भाजपा में शामिल होने की अटकलें पिछले एक हफ्ते से चल रही थीं। पूर्व में जब रावत के भाजपा में शामिल होने की अटकलें तेज हुईं, तब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चर्चा कर रोकने के कोशिश की। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विभय सिंह ने भी रावत को अपने चुनाव क्षेत्र राजगढ़ में बुलाकर सभाएं करवा डालीं। लेकिन कांग्रेस पार्टी रावत को रोकने में सफल नहीं हो पाई। वे आखिरकार भाजपा में शामिल हो गए हैं।
भाजपा उतारेगी प्रचार में
रावत के भाजपा में शामिल होने से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर भी राजगढ़ लोकसभा सीट पर अब हार का खतरा बढ़ गया है। क्योंकि राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र में रावत/मीणा समाज प्रभावी मतदाता है। वहीं रामनिवास के आने से मुरैना, ग्वालियर, गुना, राजगढ़, भोपाल, मंदसौर पर जातिगत समीकरण पक्ष में मजबूत हो सकते हैं। अब ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की सीटों के अलावा राजगढ़ क्षेत्र में भाजपा के लिए प्रचार करेंगे। जल्द ही पार्टी उन्हें चुनाव प्रचार में उतार सकती है। रावत अपने समाज के प्रभावशाली नेता हैं। मप्र के अलावा राजस्थान में भी कुछ सीटों पर उनका प्रभाव है। भाजपा चुनाव में रावत का फायदा लेना चाहेगी। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी ने रावत को लोकसभा चुनाव में किसी तरह की कोई जिम्मेदारी नहीं सौंपी थी। पार्टी को रावत के भाजपा में जाने का संदेह पहले से ही था।
बदली हवा होगा फायदा
भाजपा का मानना है कि रावत के भाजपा में शामिल होने से कई सीटों पर हवा बदल गई है। रामनिवास रावत ने भाजपा में शामिल होने से पहले अपने चुनाव क्षेत्र विजयपुर में बैठक बुलाई थी, जिसमें ओबीसी समाज के लोग पहुंचे थे। उन्होंने अपने फैसले को लेकर जनता को अवगत कराया। इसके बाद वे भाजपा में आए। रामनिवास के पार्टी बदलने से मुरैना में चुनावी हवा का रुख बदलता दिखाई दे रहा है। वहीं भाजपा को मुरैना और गुना सीट पर भी रामनिवास से फायदे की उम्मीद है। क्योंकि इन सीटों पर रावत समाज के अलावा ओबीसी निर्णायक भूमिका है। रामनिवास रावत का ओबीसी की समाजों में भी प्रभाव है। राजगढ़ लोकसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। क्योंकि पिछले साल विधानसभा चुनाव में उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह चाचौड़ा सीट से चुनाव हार चुके हैं। इस सीट पर मीणा समाज बड़ी संख्या में है। वहीं राजगढ़ लोकसभा की दूसरी विधानसभा सीटों पर भी मीणा समाज की अच्छी खासी संख्या है। यदि रामनिवास समाज को पूरी तरह से भाजपा के पक्ष में करने में सफल होते हैं तो इस बार भी लोकसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह को नुकसान हो सकता है। हालांकि राजगढ़ में दिग्विजय सिंह को प्रत्याशी बनाए जाने से कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है।
फिलहाल विधायकी नहीं छोड़ेंगे रावत
रावत के इस्तीफे को लेकर अटकलें शुरू हो गई हैं। क्या रावत विधायक पद से इस्तीफा देंगे? और देंगे, तो कब तक? या फिर कांग्रेस विधायक सचिन बिरला की तरह भाजपा ज्वाइन करने के बाद भी कांग्रेस विधायक के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा करेंगे। इस पर रावत का कहना है कि अभी मैंने विधायक पद से इस्तीफा नहीं दिया है। दरअसल, इससे पहले गत 29 मार्च को अमरवाड़ा से कांग्रेस विधायक कमलेश शाह ने भाजपा जॉइन कर ली थी। शाह का इस्तीफा विधानसभा सचिवालय को उसी दिन मिल गया था। इससे भी रावत के इस्तीफे को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन के माध्यम से देश में दल-बदल विरोधी कानून पारित किया गया। इसके अनुसार कोई भी सदस्य, एक निश्चित राजनीतिक दल के प्रतिनिधि के रूप में चुने जाने के बाद यदि वह चुनाव के बाद किसी अन्य राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है, तो उसे अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा। खास बात यह है कि कानून के अनुसार, सदन के अध्यक्ष के पास सदस्यों को अयोग्य करार देने संबंधी निर्णय लेने की शक्ति है। अमरवाड़ा से विधायक कमलेश शाह के इस्तीफा देने के बाद विधानसभा सचिवालय ने यह सीट रिक्त घोषित कर यहां छह महीने के अंदर उप चुनाव कराने की सूचना चुनाव आयोग को भेज दी थी। इस सीट पर उप चुनाव होना तय है। विधायक रामनिवास रावत के इस्तीफा देने के बाद जब विस सचिवालय उसे स्वीकर कर विजयपुर को रिक्त सीट घोषित करेगा, तब ही वहां उप चुनाव होंगे। गौरतलब है कि कांग्रेस विधायक रहे सचिन बिरला ने 24 अक्टूबर 2021 को खंडवा लोकसभा उपचुनाव के दौरान बेडिय़ा में आयोजित एक सभा में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में कांग्रेस छोडक़र बीजेपी में शामिल होने का ऐलान कर दिया था। इसके बाद वे कांग्रेस के विधायक रहे और काम भाजपा का करते रहे। इस तरह वे दो साल तक विधायक बने रहे।