Feb 15, 2024, 12:04 IST

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टॉरल बॉन्ड पर रोक लगायी।

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टॉरल बॉन्ड पर रोक लगायी।


 SBI को राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टॉरल बॉन्ड के ज़रिये मिले चंदे की जानकारी ECI को देने के लिये कहा। ECI को 31 मार्च तक इसकी जानकारी अपनी वेबसाइट पर डाल सार्वजनिक करने के लिये कहा। "राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले फंड के बारे में वोटरों को जानने का अधिकार है" "यह सूचना के अधिकार आर्टिकल 19(1)(a) का उल्लंघन करता है" पार्टियों के पास चंदा कहां से आया अब बताना होगा। कोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताया , मोदी सरकार द्वारा लाये गये थे इलेक्टॉरल बॉन्ड ,सरकार के इस कार्यक्रम के खिलाफ ADR ने कोर्ट में अपील की थी, 5 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया।

  • चुनावी बॉन्ड स्कीम असंवैधानिक, सुप्रीम कोर्ट ने योजना रोकी
  • गोपनीयता के प्रावधान को बताया RTI एक्ट का उल्लंघन
  • सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने सुनाया फैसला

चुनावी बॉन्ड योजना पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को बहुत बड़ा झटका दिया है। देश की सर्वोच्च अदालत ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने पिछले पांच सालों के चंदे का हिसाब-किताब भी मांग लिया है। अब निर्वाचन को बताना होगा कि पिछले पांच साल में किस पार्टी को किसने कितना चंदा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) से पूरी जानकारी जुटाकर इसे अपनी वेबसाइट पर साझा करे। शीर्ष अदालत के इस फैसले को उद्योग जगत के लिए भी बड़ा झटका माना जा रहा है।
 

RTI एक्ट का उल्लंघन करती है चुनावी बॉन्ड की योजना

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम में गोपनीय का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत सूचना का अधिकार कानून का उल्लंघन करता है। अब शीर्ष अदालत के फैसले के बाद पब्लिक को भी पता होगा कि किसने, किस पार्टी की फंडिंग की है। चार लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर चुनावी बॉन्ड स्कीम की वैधता को चुनौती दी थी। इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला दिया है जिसका दूरगामी असर हो सकता है, खासकर लोकसभा चुनावों के मद्देनजर।
 

'रिश्वतखोरी को कानूनी जामा पहनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती'

सुप्रीम कोर्ट ने आशंका जताई कि राजनीतिक दलों की फंडिंग करने वालों की पहचान गुप्त रहेगी तो इसमें रिश्वतखोरी का मामला बन सकता है। पीठ में शामिल जज जस्टिस गवई ने कहा कि पिछले दरवाजे से रिश्वत को कानूनी जामा पहनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि इस स्कीम को सत्ताधारी दल को फंडिंग के बदले में अनुचित लाभ लेने का जरिया बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। उन्होंने मतदाताओं के अधिकार की भी बात की।

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