May 24, 2025, 11:11 ISTChhattisgarh

एक ही दिन में बदल गई अबूझमाड़ की तस्वीर जहां बने हैं लाल स्मारक, वहां अब जवानों का है धाक

एक ही दिन में बदल गई अबूझमाड़ की तस्वीर जहां बने हैं लाल स्मारक, वहां अब जवानों का है धाक

जगदलपुर

अबूझमाड़ इलाके में हाल ही में हुई मुठभेड़ के बाद वहां की स्थिति बेहद संवेदनशील बनी हुई है. माओवादियों की मांद कहे जाने वाले अबूझमाड़ में प्रवेश करते ही जगह-जगह लाल रंग के नक्सली स्मारक दिखाई देते हैं. लेकिन एक ही दिन में यह सारी चीजें बदल गई, अब यहां सुरक्षाबलों के जवानों की धाक है.

अबूझमाड़ के पथरीले रास्तों और उफनते नदी-नालों के बीच से होते हुए बोटेर गांव तक पहुंचा जा सकता है. सबसे पहला नक्सली स्मारक आदेड चौक में देखने को मिलता है. इस चौक की हालत भी बयां करती है कि यह इलाका कितना उपेक्षित और असुरक्षित रहा है.

सड़क किनारे गिरे हुए बिजली के खंभे, टूटे रास्ते और वीरानी बोटेर गांव तक पहुँचने से पहले तोंदेबेड़ा, डोंडरबेड़ा और कूड़मेल जैसे गांवों को पार करना होता है. ये गांव भी उसी सन्नाटे और भय की चादर में लिपटे हुए हैं. बोटेर पहुँचते ही नज़ारा अलग था बड़ी संख्या में ग्रामीण यहाँ एकत्रित थे. बातचीत में पता चला कि ये लोग कुंडेकोट गांव के निवासी हैं, जो 21 मई से बोटेर में शरण लिए हुए हैं.

दरअसल, कुंडेकोट में ही पुलिस और नक्सलियों के बीच ऐतिहासिक मुठभेड़ हुई थी. इस ऑपरेशन में नक्सलियों के जनरल सेक्रेटरी नंबाला केशव को मार गिराया गया, जिस पर डेढ़ करोड़ रुपए का इनाम था. उसके साथ 26 अन्य नक्सली भी मारे गए. इस बड़ी कार्रवाई के बाद कुंडेकोट के ग्रामीण डर के साए में आ गए और जान बचाने के लिए अपना गांव छोड़कर बोटेर आ पहुंचे.

नक्सलियों के इस मांद की सफाई (ऑपरेशन) डीआरजी के जवानों ने पूरी कुशलता के साथ किया. अब न तो नक्सली हैं, और न ही उनकी धमक. अब केवल डीआरजी के जवानों की धमक सुनाई पड़ती है. बसवराजु की मौत से पूरी तस्वीर बदल गई है, अब सुरक्षाबल के जवान इसे वापस नक्सलगढ़ नहीं बनने देने के लिए प्रतिबद्ध नजर आते हैं. अबूझमाड़ की यह जंग सिर्फ हथियारों की नहीं, हौसले, रणनीति और बलिदान की भी गवाही देती है.