Jul 19, 2025, 20:50 ISTMadhya Predash

“बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस पर संकल्प सभा: सार्वजनिक बैंकों को कमजोर करने के प्रयासों का डटकर विरोध”

विवेक झा, भोपाल। 19 जुलाई 2025।
ऑल इंडिया बैंक एम्प्लाईज एसोसिएशन (AIBEA) के आह्वान पर शनिवार शाम राजधानी भोपाल में बैंक राष्ट्रीयकरण की 56वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक संकल्प सभा का आयोजन किया गया। यह सभा भोपाल हाट परिसर स्थित ‘नाइन मसाला सभागार’ में सम्पन्न हुई, जिसमें राजधानी की विभिन्न बैंकों के सैकड़ों कर्मचारी व अधिकारी शामिल हुए।

“बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस पर संकल्प सभा: सार्वजनिक बैंकों को कमजोर करने के प्रयासों का डटकर विरोध”

इस अवसर पर वक्ताओं ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की मौजूदा चुनौतियों पर चर्चा करते हुए उन्हें आत्मनिर्भर भारत की रीढ़ बताया और सरकार से मांग की कि बैंक निजीकरण की योजनाओं को तत्काल रोका जाए। उन्होंने कहा कि अगर सार्वजनिक बैंकों को कमजोर किया गया, तो इसका सीधा नुकसान देश की अर्थव्यवस्था, रोजगार और आम आदमी की बचत पर पड़ेगा।

“बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस पर संकल्प सभा: सार्वजनिक बैंकों को कमजोर करने के प्रयासों का डटकर विरोध”

सभा को म.प्र. बैंक एम्प्लाईज एसोसिएशन सहित विभिन्न बैंक यूनियनों के प्रमुख पदाधिकारियों — वी.के. शर्मा, दीपक रत्न शर्मा, मोहम्मद नजीर कुरैशी, जे पी झवर, गुणशेखरन, भगवान स्वरूप कुशवाह, देवेंद्र खरे, विशाल धमेजा, अशोक पंचोली, किशन खेराजानी, सत्येंद्र चौरसिया, राजीव उपाध्याय, अमित गुप्ता, के वासुदेव सिंह, सतीश चौबे, सुनील देसाई, संतोष मालवीय,राम चौरसिया, राशि सक्सेना, शिवानी शर्मा, अमित गुप्ता, वैभव गुप्ता, सनी शर्मा, कमलेश बरमैया, अमित प्रजापति, विजय चोपडे, मनीष यादव, जीडी पाराशर, एसके घोटनकर, चेतन मोड, ए के धूत सहित कई वरिष्ठ बैंक नेताओं ने संबोधित किया।

 

वक्ताओं ने कहा कि 1969 में हुए बैंक राष्ट्रीयकरण ने देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती दी और आम आदमी को वित्तीय व्यवस्था से जोड़ा। आज जब देश की कुल जमा राशि ₹220 लाख करोड़ के पार है, उसमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी ₹140 लाख करोड़ से अधिक है — जो इस बात का प्रमाण है कि आम आदमी का भरोसा आज भी इन्हीं बैंकों में है।

 

सार्वजनिक बैंकों की भूमिका

सभा में यह रेखांकित किया गया कि कैसे इन बैंकों ने कृषि, लघु उद्योग, महिला सशक्तिकरण, ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा और आधारभूत ढांचे जैसे क्षेत्रों में देश को आगे बढ़ाया है। साथ ही, इन बैंकों ने सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन और रोजगार सृजन में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। वक्ताओं का कहना था कि अगर इन बैंकों को और अधिक मज़बूत किया जाए, तो वे आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को वास्तविकता में बदल सकते हैं।

 

निजीकरण का विरोध और मांगें

सभा में बैंक कर्मियों ने निजीकरण के विरुद्ध स्पष्ट रूप से आवाज़ बुलंद की और निम्न प्रमुख मांगें सामने रखीं:

  • बैंकों के निजीकरण के प्रयासों को तुरंत बंद किया जाए।

  • सभी सार्वजनिक बैंकों को समुचित पूंजी प्रदान की जाए।

  • जानबूझकर ऋण नहीं चुकाने वालों के खिलाफ सख्त और दंडात्मक कार्रवाई की जाए।

  • डिफॉल्टरों के नाम सार्वजनिक किए जाएं और उन्हें चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जाए।

  • आईबीसी (इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड) की समीक्षा की जाए।

  • बैंकिंग सेवाओं पर लगने वाले सेवा शुल्कों को कम किया जाए और ग्राहकों को बेहतर सेवा देने के लिए पर्याप्त स्टाफ की भर्ती की जाए।

  • समस्त निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाए।

 

संकल्प और एकजुटता

सभा के अंत में बैंक कर्मियों ने एकमत होकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की रक्षा करने, निजीकरण के प्रयासों को रोकने और ग्राहकों को बेहतर सेवा देने का संकल्प लिया।

वी.के. शर्मा, महासचिव, म.प्र. बैंक एम्प्लाईज एसोसिएशन ने सभा का संचालन करते हुए कहा कि बैंक कर्मचारी देश के आर्थिक स्वाभिमान की रक्षा के लिए हर मोर्चे पर संघर्ष करने को तैयार हैं।