घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम-2005 घरेलू हिंसा के विरुद्ध संरक्षण एवं सहायता का अधिकार देता है, जिनमें शारीरिक हिंसा, लैंगिक हिंसा, मौखिक और भावनात्मक हिंसा, आर्थिक हिंसा इत्यादि सम्मिलित है। योजनान्तर्गत घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं, बालिकाओं को ऐसी हिंसा के कारण शारीरिक क्षति होने पर क्षतिपूर्ति, के रूप में सहायता राशि दिए जाने का प्रावधान है। योजनान्तर्गत प्राप्त आवेदन पत्रों को निराकरण के लिए जिला स्तरीय समिति का गठन किया गया है।
"क्षति" से आशय शारीरिक क्षति जो घरेलू नातेदार की ओर से किए गए किसी आपराधिक कृत्य अथवा लोप के परिणाम स्वरूप हुई हो। घरेलू हिंसा का वही अर्थ है , जो घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम-2005 की धारा 3 में प्रावधानित है। घरेलू नातेदारी का यही अर्थ है, जो घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम-2005 की धारा 2 (च) में प्राक्यानित है। संरक्षण अधिकारी, प्रशासक को आवेदक (पीड़िता आश्रित) द्वारा घटना की दिनांक से 01 वर्ष के भीतर आवेदन प्रस्तुत करना होगा। सूचना किसी भी माध्यम से प्राप्त होने पर संरक्षण अधिकारी, प्रशासक घरेलू हिंसा की घटना संज्ञान लेकर स्वमेव भी आवेदक के संपर्क कर आवेदन प्राप्त कर सकेगा। आवेदन के साथ घटना की एफआईआर दर्ज किया जाना होगा। संरक्षण अधिकारी, प्रशासक द्वारा अपना प्रतिवेदन जिला कार्यक्रम अधिकारी को कार्यवाही के लिए दिया जायेगा।
योजना के अन्तर्गत प्राप्त आवेदन पत्रों को संबंधित जिले का जिला कार्यक्रम अधिकारी, गठित जिला स्तरीय समिति के समक्ष निर्णयार्थ रखेगा। सदस्य सचिव स्वीकृति जिला कार्यक्रम अधिकारी, महिला बाल विकास विभाग द्वारा जारी किया जाएगा। सहायता राशि का संवितरण आधार से जुड़े बैंक खाते के माध्यम से किया जायेगा। यदि पीड़िता अवयस्क है, तो मामले में क्षतिपूर्ति राशि अभिभावक के खाते में दी जा सकेगी। अवयस्था के खाते में सावधि जमा के संबंध में भी निर्णय जिला स्तरीय समिति द्वारा तात्कालीक परिस्थितियों के आधार पर लिया जा जाएगा।
योजना की निगरानी
जिला स्तरीय समिति द्वारा योजना के क्रियान्वयन की निगरानी तैमासिक आधार पर की जायेगी। जिला स्तरीय समिति द्वारा आवेदनों का परीक्षण व पुनरावलोकन कर राशि निर्धारण किये जाने के लिए कलेक्टर आवश्यकतानुसार बैठक आयोजित कर योजनान्तर्गत जिला स्तर पर जिले में पदस्थ महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों द्वारा समय-समय पर प्रगति की समीक्षा की जायेगी।
परिवहन एवं यात्रा
पीडिता को शारीरिक क्षति होने पर गंतव्य स्थल तक जिसमें पीड़ित महिला का प्रकरण न्यायालय में विचाराधीन रहने की अवधि भी शामिल है, आवागमन के लिये तत्कालीक रूप से परिवहन के वास्तविक व्यय की व्यवस्था जिला कार्यक्रम अधिकारी द्वारा की जाएगी जो कि सार्वजनिक परिवहन की दरों के अनुरूप होगा। घरेलू हिंसा के कारण पीड़िता के किसी अंग की स्थाई क्षति होने पर आर्थिक सहायता दी जायेगी इसके लिये प्रक्रिया जिला स्तर पर गठित समिति द्वारा शासन निदे्रशानुसर निर्धारित कि जाएगी।